TOP LATEST FIVE रंगीला बाबा का खेल URBAN NEWS

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औरंगज़ेब ने देखा तो पूछा, "ये किसका जनाज़ा लिए जा रहे हैं जिसकी ख़ातिर इस क़दर रोया पीटा जा रहा है?"

आपको यकीन नहीं होगा, नवरात्रि के इस पावन समय में देशभर के गली-मुहल्लों तक में रामलीलाएं हो रही हैं, इस बीच राजधानी दिल्ली के दिल में एक मंच ऐसा भी है जिस पर बीते सात दशकों से श्रीराम कथा सुनाई, दिखाई और गाई जा रही है.

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कई लोगों ने ख़ुद अपनी बेटियों और बीवीयों को क़त्ल कर दिया कि वो ईरानी सिपाहियों के हत्थे न चढ़ जाएं.

इंदौर, सूरत में जो कुछ हुआ, वह हमें गलत लगा, इसलिए वाराणसी से संदेश देने के लिए हमने चुनाव लड़ने की ठानी थी. हमारा संदेश इतना मजबूत जाएगा, इसका हमें अंदाजा नहीं था.’

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सब स्थिर हो जाता है. ये कुछ पल मानव संस्कृति की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं, जो बताते हैं कि हम इतिहास में इतनी समृद्ध व्यवस्था वाले रहे हैं, जहां प्रकृति के हर हिस्से और किस्से से हमारा जुड़ाव रहा है. ये हमारा इतिहास है जो हमें वर्तमान में भी इतना ही उन्नत बनने की प्रेरणा देता है.

सारी रंगीनियां और रंगरेलियां अपनी जगह, मोहम्मद शाह रंगीला ने हिंदुस्तान की गंगा जमनी तहज़ीब और कलाओं को बढ़ावा देने में जो किरदार अदा किया उसे नज़रअंदाज़ करना नाइंसाफ़ी होगी.

रामकथा के इस अनूठे आयाम को समझने के लिए आपको दर्शकों की उस कतार का हिस्सा होना होगा, जो अयोध्या में राम जन्म होने पर बधाई गीत पर झूमती है. उनके साथ 'गुरु गृह गए पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब पायी.' का साक्षी बनती है और फिर अगले ही पल यही दर्शक दीर्घा विश्वामित्र ऋषि के साथ राम-लखन को लेकर वन में चली जाती है.

एक बार नाटिका जो शुरू हुई फिर तो मृदंग की थाप के साथ पैरों की चाप संतुलन बनाती जाती है और जैसे-जैसे उंगलियों में हलचल होती, आंखों की पुतलियां तक उसी इशारों में घूम जाती हैं. इनके साथ ही राग का सामंजस्य... भक्ति रस है तो राग पीलू और तिलंग. आह्लाद है तो भूपाली और खमाज, करुणा, वियोग और विषाद तो राग भैरव-भैरवी, जब जैसी प्रकृति तब वैसा राग और वैसे ही भाव.

वो कहते हैं कि औरंगज़ेब के दौर में जब संगीत पर पाबंदी लगी तो गवैयों और संगीतकारों की रोज़ी-रोटी बंद read more हो गई.

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